किस्मत(luck)
99% और 1% का खेला कोई कड़ी मेहनत वाला ही समझ सकता है वरना हम सब मानसिक रोगी है आप बड़े ध्यान से गहरी सोच से अपने जीवन में जानने की कोशिश कीजिए कोई ऐसा काम जो बिना करे हो गया हो या यू कहें अपने आप हो गया हो या फिर यूं कहे खाना खाने के लिए हाथो की जरूरत ही नही है अटल सच तो यह है की हमारी किस्मत को हमारे हाथ ही बनाते हैं ये 99% सच हैऔर luck या किस्मत 1% भी सच है और यह किस्मत जीवन में एक आधी बार करामाती तौर पर होता है जब यह होता है तो हम 99% वाली अपनी पक्की गारंटी को छोड़ कर इस 1% वाली सोच की रट लगा लेते है और आलसी बन जाते है जो कोई कसर बाकी रह जाती है वह हमारे धर्म गुरु इस रट को और पक्का कर देते है की भाग्य में लिखा है माथे पर जो लिखा है वो मिलना ही मिलना है तारीक तो बताते नही क्योंकी वो बता ही नही सकते लेकिन कड़ी मेहनत वाला confirm कर देता है सफलता पक्की है वह 1% का इंतजार क्यों करेगा जब उसे 99% परमात्मा ने उसी के हाथ दे रखा है सिर्फ 1% अपने पास रखा है ।
देखने जानने से अनुभव होता है जो लोग मानसिक तौर से कमजोर होते है वह चलाक और शरारती लोगो का शिकार हो जाते है और उम्र भर किस्मत का इंतजार करते निकाल देते है जब कुछ नही मिलता तो फिर पिछले जन्म का फल बता कर अपने को छुपाने की कोशिश करते है ,स्कूल में हम पढ़ते है God help those who help themself एक बार एक massion मेरा मित्र था बोलने लगा कौन सा साथ में कुछ जाना है इस को demotivation कहते है इस का मतलब हुआ फिर खाना भी नहीं खाना चाहिए हम सब जानते है बंदे में जब तक इच्छाएं जीवत है बंदा जीवत है और परिश्रम मेहनत ही एक ऐसी सोच है जो बंदे को मानसिक और शरीरक तौर पर Fit रखती है और खुश रखती है मेहनती बंदे के पास परमात्मा खुद चल कर आता है ।
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