आलोचना (criticism)

Evils

 आलोचना एक बुराई होती है अगर हम किसी को नीचा दिखाने के लिए करते है,समाज में अधिकतर जाने अंजाने हम किसी की आलोचना करते रहते है रिश्तेदार भी मौका मिलते ही एक दुसरे की नुक्कताचीनी करते रहते है औरते तो एक दुसरे रिश्तेदार के नुक्स निकालती रहती है औरते गलबात आलोचना को रोटी से अधिक समझती है दुसरा औरत मर्द से अधिक समय तक बोलने की क्षमता रखती है और सहनशीलता भी मर्द से अधिक रखती है दुख भी मर्द से अधिक सहन कर सकती है।चुगली निंदा और आलोचना अलग अलग होती है ज्ञान के साथ अगर हम किसी कॉमेंट की आलोचना करते है या किसी विषय पर शांतिपूर्ण ढंग से बहस करते है तो सचाई को ढुडने में इस से कोई और अच्छा रास्ता नही होता आप TV पर देखते है एक पार्टी दुसरी पार्टी की आलोचना करती रहती है किसी पार्टी ने कभी नही बोला यह गलती हमारी पार्टी की है वो तो अपनी पार्टी को चमकाने के लिए TV पर आते हैं देश को इस में कुछ फायदा नहीं होता  पार्लियामेंट में तो लड़ाई हो जाती है किसी आलोचना को लेकर फिर कानून साफ सुथरे कैसे बनेंगे लम्बी चौड़ी 2साल11महीने  18दिन बहस आलोचना सुनने के बाद हमारा संविधान बना था जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ जबकि देश 15 अगस्त 1947को आजाद हो चुका था सविधान को त्यार करने में बहस और आलोचना को बहुत समय दिया गया जो आज दुनिया का बेस्ट सविधान है सब वर्ग के लोगो को बराबर हक दिए गए है ऊंच नीच को खत्म किया जा चुका है 

            आलोचना सिर्फ आलोचना वाले ही दिन होनी चाहिए और अपने विषय से भटकना नहीं चाहिए मकसद सचाई को डूंडना ही होता है कट्टरवाद सोच से विकास नही होता और रूढ़िवादी सोच रखने वालो को शामिल नहीं करना चाहिए नए जमाने के साथ नई सोच से ही आलोचना करनी चाहिए practically परख करने के बाद ही आलोचना को सही मानना चाहिए  कागजी सोच से बचना चाहिए नकल की हुई आलोचना समय की बरबादी होती है आलोचक का बुरा नही मानना चाहिए।

 

           

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